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राष्ट्रीय लोक अदालत के नाम पर खानापूर्ति ! _____________

11-09-2021 09:04:49 PM


भारत की न्याय व्यवस्था एक लचर और सुस्त न्याय व्यवस्था मानी जा सकती है । ना कोई समुचित उपचार ना काउंसलिंग ना ही मुकदमों की सुनवाई ,केवल तारीख पर तारीख । हजारों मुकदमों , उनसे चलती वकीलों की दुकान और मुकदमों में व्याप्त भ्रष्टाचार ने आम जनमानस के जीवन को दूभर बना कर रख दिया  हैं । हिंदी सिनेमा के सापेक्ष असलियत को माने तो  लंबित मुकदमों में जल्दी जल्दी केवल तारीखे लगवाकर मुवक्किलों से फीस वसूली की एजाती है जिससे वकील साहब का जेब भरता है और उसी फीस से  जज साहब के यहां शाम की सब्जी खरीद कर पहुंचाई जाती है । जज साहब का पेशकार जज साहब के नाक के नीचे  हर तारीख पर बीस रुपए की दर से वसूली करता है। खैर असलियत भी कुछ ऐसा ही बयां करती है कि न्यायालय में सबसे अधिक भ्रष्टाचार व्याप्त है।   बात करें आए दिन होने वाले विवादों, मारपीट और राजस्व के मुकदमों की तो सरकार के न्याय पैनल में ना तो योग्य जज है जो ईमानदारी से पक्ष विपक्ष को सुने और दो चार तारीख में ही मुकदमों का निस्तारण कर दें और यदि वो ऐसा करना भी चाहे तो वकील विरोध प्रदर्शन करके जज साहब को ही हटवा देंगे । अब ऐसे में वकील जोंक की तरह मुवक्किलों का पैसा चूसेंगे तारीख के नाम पर ।  मुकदमों को निस्तारित करने का कोई सफल तरीका नहीं। 
           हजारों सामान्य मुकदमें भी, जिनका निर्णय आपसी समझ , ठोस सबूतों के अभाव में अथवा अरुचि के कारण संभव है वो भी लंबित है क्युकी वकील साहब खुद नहीं चाहते कि मामला निस्तारित हो इसलिए बस तारीख पर तारीख। न्याय प्रक्रिया में  इतनी छीछालेदर के  बाद आज भी जिला न्यायालय में लंबित हजारों प्रतिवाद ऐसे  है जिनके समाधान का कोई ठोस उपाय  नहीं ढूंढा जा सका।ऐसे  बढ़ते मुकदमों के बोझ से परेशान भारत सरकार ने समय-समय पर राष्ट्रीय लोक अदालतों का आयोजन सुनिश्चित किया था लेकिन यह आयोजन भी  महज खानापूर्ति बनकर रह गया है  । बीते शनिवार जनपद जौनपुर उत्तर प्रदेश के तहसील केराकत में राष्ट्रीय लोक अदालत का आयोजन किया गया जिस पर ना  प्रशासन की कोई दिलचस्पी दिखी ना जज महोदय ने समाधान के लिए कोई प्रयास दिखाया और अपने चेंबर में ही बैठे रह गए । वादी और प्रतिवादी में से कोई एक पक्ष ही  कोर्ट में पहुंचा क्युकी समय निश्चित नहीं था  दूसरा पक्ष घर पर मौज करता रहा । जो पक्ष लोक अदालत में पहुंचा वो चाहता था कि मुकदमों के भागादौड़ी से मुक्ति पा ले पर ऐसा संभव कहां है भारत में सो वह भी खाली हाथ लौट आया क्योंकि वहा अव्यवस्था के अतिरिक्त कुछ भी नहीं था। न्याय प्रणाली भी  इंतजार करता दिखा,  जब वहां उपस्थित पेश्कार से पूछा गया कि कैसे समझौतों के आधार पर मुकदमों का बोझ कम किया जाता है तो उसने दो टूक शब्दों में कहा कि यहां  आपस में बातचीत के बाद आना चाहिए लोगो को।   हमारा काम केवल कागज बनाकर मामलों को निपटाना है,ना कि हाजिरी लगवानी की कौन आ रहा कौन जा रहा ।  एक वादी से बातचीत के दौरान यह पता लगा कि वह पेशे से सरकारी कर्मचारी है और उसे झूठे मुकदमे में मारपीट का आरोप लगाकर फसाया गया है।  उसका मुकदमा राष्ट्रीय लोक अदालत में आज सुनवाई के लिए लगा है उसके घर लोक अदालत का नोटिस गया था इसलिए आया है , जिसके एवज में वह कोर्ट में उपस्थित है किंतु विपक्षी आएगा कि नहीं इस संबंध में पूछे जाने पर उनके पास कोई जवाब नहीं था ना जज  साहब को पता है । पेशकार ने भी गैर जिम्मेदाराना तरीके से कहा की ये सब आप लोग जानो  कोर्ट का यह काम नहीं ।  उपस्थिती के विषय में ऐसे जवाब सुनकर लगा कि ये लोक अदालत केवल कोरम पूर्ति है  । एक पुलिस वाले से इस बाबत पूछा गया तो वो वह बोला इसका अदालत से कोई मतलब नहीं आप  बाहर मामले को सुलह कीजिए ,फिर आइए और फिर यहां आकर कागज पेश कीजिए इस तरह आखिर कैसे राष्ट्रीय लोक अदालत में मामलों का निस्तारण संभव है ?  एक पत्रकार के तौर पर जब मैंने अपनी पहचान छुपा कर वहां उपस्थित पुलिस वालों से जानना चाहा तो थाना केराकत का  एक सिपाही मोबाइल पर गेम खेलता दिखा ना उसने मास्क  लगाया था  ना ही व्यवस्था में दुरुस्त दिखा । कुछ पूछने पर रौब में भरकर बोला कि आप लोग बैठे जज साहब बैठेंगे तभी  कोई कार्यवाही होगी अन्यथा घर जाइए । समाज में इस तरह का गैर जिम्मेदाराना रवैया   समाज के लिए घातक मानी जाती है, इस मुद्दे पर उत्तर प्रदेश न्याय व्यवस्था एवं भारतीय न्याय प्रणाली से आग्रह करूंगा कि ऐसे राष्ट्रीय लोक अदालतों के आयोजन से पूर्व यह सुनिश्चित कर ले  की वादी और प्रतिवादी दोनों समय से कोर्ट में उपस्थित हो जिसकी जिम्मेदारी पुलिस को दी जाय और  उनकी हाजिरी नोट की  जाए इसके पश्चात दोनों पक्षों को समझाया जाए तभी इन लोक अदालतों का औचित्य होगा अन्यथा आपसी सुलह समझौतों का कोई तार्किक  हल संभव नहीं । वकील खुद नहीं चाहते कि मुकदमे खत्म हो क्योंकि उनकी दुकान का वहीं साधन है , इस प्रकार शासन प्रशासन को स्वयं ऐसे आयोजनों से पहले वादी और प्रतिवादी दोनों से यह लिखित में लेना चाहिए कि वह आयोजन में अवश्य उपस्थित रहेंगे ताकि हजारों मुकदमों के बोझ में से कुछ मुकदमों को कम करके भारतीय न्याय प्रक्रिया को सरल बनाया जा सके। 
            

__ पंकज कुमार मिश्रा एडिटोरियल कॉलमिस्ट शिक्षक एवं पत्रकार


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