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सामाजिक कट्टरता को प्रश्रय ना दें जनता - आर के मिश्रा

29-04-2021 12:47:03 PM


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किसी भी क्षेत्र एवं खंड की सकारात्मक एवं सुदृढ़ व्यवस्था के भले ही अनेक मानक हो सकते हैं लेकिन वस्तुतः धार्मिक, सामाजिक एवं राजनीतिक व्यवस्था से उस क्षेत्र विशेष की सुदृढ़ता मालूम होती है। अगर हम देखें तो हमें मालूम होता हैं कि 19 वीं शताब्दी से पहले धूमिल हुये सामाजिक,धार्मिक और राजनीतिक दशा में सुधार की शुरुआत 19 वीं शताब्दी से शुरू हुए विभिन्न धार्मिक, सामाजिक एवं राजनीतिक आंदोलनों ने भारतीयों एवं विश्व की धार्मिक, सामाजिक एवं राजनीतिक दशा को सुधारने के महान प्रयास शुरू हुए। इन आंदोलनों से नैतिकता और धर्म के नवीन विचार जागृत हुए, जिससे भावी उन्नति का मार्ग प्रशस्त हुआ।समाज और धर्म दोनों में सुधार होने से नवीन भारत एवं नये विश्व का प्रादुर्भाव हुआ। उक्त बातें कही भाजपा दिल्ली प्रदेश प्रवक्ता पूर्वांचल मोर्चा श्री आर के मिश्रा जी ने ।
       श्री मिश्रा ने कहा कि सामाजिक कट्टरता को प्रश्रय ना देकर केवल सहयोग और श्रम को महत्व देना ही वर्तमान समय की मांग है । अपने इंटरव्यू में कॉलमिस्ट और पत्रकार पंकज कुमार मिश्रा जी के साथ बात करते हुए श्री आर के मिश्रा ने बताया कि वर्तमान भारतीय संस्कृति पतन की तरफ है, जागरूक  भारतीयों को बाधाओं को समझने और परखने की आवश्यकता है । प्रारम्भ में  भारतीयों ने पाश्चात्य सभ्यता और संस्कृति के अच्छे संस्कार को अपनाते हुए अपनी प्राचीन परम्पराओं को परिष्कृत किया। अगर देखें तो यह वास्तव में नवजागरण का काल था, जो लोक धर्म, देश और जाति को नवीन रूप दे रहे थे।अगर हम भारत में राजनीतिक जागृति और राष्ट्रीय भावना विकसित करने का श्रेय किसी को दें तो इन्ही आंदोलनों के माध्यम से ही दिया जाता हैं। जिसमें भाषा एक ऐसा माध्यम हैं जिससे बिचारों का आदान प्रदान बड़े स्तर पर किया जा सकता है।सामाजिक एवं धार्मिक आंदोलनों के प्रभाव से संस्कृत एवं कई भाषाओं में अनेक ग्रंथों का अनुवाद अंग्रेजी भाषा में हुआ जिससे पश्चिमी लोगों को भी हमारे प्राचीन ग्रंथ पढने का अवसर मिला। इन आंदोलनों के फलस्वरूप सभी भाषाओं  का बड़े स्तर पर अत्यधिक विकास हुआ। इसी प्रकार अन्य प्रांतीय भाषाओं का भी उसी स्तर पर विकास हुआ। इस काल के साहित्य ने जनता में राष्ट्रीय भावनाओं को जागृत करने में अपना महत्वपूर्ण योगदान दिया। इन आंदोलनों के प्रभाव के कारण धार्मिक और सामाजिक सुधारों के फलस्वरूप राष्ट्रीय एकता की भावना का देशवासियों में विकास हुआ।भारतीय जनता ने अपनी संकीर्णता की सीमाओं से निकलकर देश के राजनीतिक विषयों में विस्तृत रूप से विचार करना प्रारम्भ किया। समाज में समानता और स्वतंत्रता का वातावरण बड़े स्तर पर उत्पन्न हुआ।हुआ यह कि इन सुधारों के परिणामस्वरूप जन जीवन में अंधविश्वास और श्रद्धा का स्थान बुद्धि और तर्क ने लिया। मनुष्य किसी भी बात व सिद्धांत का अंधानुकरण न कर तर्क सहित सोच विचार कर अपने कार्य करने लगे। संकुचित मनोवृति का स्थान उदारता ने ले लिया और स्वतंत्र विचारों ने कट्टरता और शास्त्रों की मान्यता पर विजय प्राप्त की।  ऐसे उदाहरण हमें अक्सर मिलते रहते हैं जिसमें सभ्यता, संस्कृति एवं बिचार जब अपने निम्न स्तर पर आ जाता है, तब-तब सामाजिक, धार्मिक एवं राजनीतिक आंदोलनों एवं सुधारकों द्वारा हम उस खोई हुई गरिमा को पुनः प्राप्त कर लेते हैं। लेकिन हमारी कोशिश यह होनी चाहिए कि हम अपनी जिममेदारी को समझते हुए ऐसे किसी भी धरोहर को नष्ट होने से बचाएं और आनेवाली पीढ़ी को भी सकारात्मक एवं सुदृढ़ समाज दें।

 

पंकज मिश्रा


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