Breaking News

आयुर्वेद के समर्थन में उतरने की आवश्यकता ! ____________

27-05-2021 10:35:08 PM


बाबा रामदेव भारत के योग धरोहर है । बाबा रामदेव का व्यापारिक प्रतिष्ठान पतंजलि आज वर्तमान समय में सर्वाधिक प्रचलित प्रतिष्ठान है जो भारत समेत वैश्विक व्यापार और बाजार में आयुर्वेद का  सबसे अग्रणी निर्यातक है । अभी हाल ही में बढ़ते करोना संकट में जहां एक तरफ एलोपैथ से सुसज्जित हाईटेक अस्पतालों ने संक्रमित मरीजों से बीस - बीस लाख रुपए का बिल वसूला और उस पर भी मरीजों की जान बचाने की कोई गारंटी नहीं ले पाया । लोग कफी हद तक गिलोय , अदरक ,तुलसी आदि के काढ़े पर निर्भर रहे । जब बाबा रामदेव ने एलोपैथ के महंगे उपचार पर तंज किया तो देश के डॉक्टर जिनकी दुकान इसी भरोसे चल रही उनका उबलना जायज है । मै एक विश्लेषक और पत्रकार होने के नाते बाबा रामदेव के उस बयान के समर्थन में तब खड़ा होता हूं जब मुझे ये सच्चाई अच्छे से पता है कि हमारे देश में जेनेरिक दवाओं की कालाबाजारी और उनसे बनी नकली एलोपैथ से ना जाने कितनी जिंदगियां यू ही काल के गाल में समा जाते है । मेरे हिसाब से बाबा रामदेव ने एलोपैथ के विषय में जो भी फब्तियां की वो वैचारिक दृष्टि से बिल्कुल यथार्थ है । आयुर्वेद जीवन है इस पर कोई शक नहीं किन्तु एलोपैथ की अपनी जगह है ,यदि वो सही तरीके से सरकारी नियंत्रण में हो तब ।
                           इस वक्त डाबर का गिलोय, नीम, तुलसी रस की बोतल, जिसकी कीमत है 250 रुपये है । वहीं पर कोरोनिल का पैकेट भी  है, जिसकी  कीमत  545 रुपये है । यहां पर होम्योपैथिक आर्सेनिक की शीशी भी  है जिसकी कीमत उपरोक्त दोनों से कम । इन सबके साथ पारासिटामोल 650 की एक पत्ती, ज़िंकोविट की एक पत्ती, विटामिन सी की एक पत्ती और एक कफ सिरप भी रखी है जिनकी कीमत आयुर्वेद से ज्यादा है , इन सबकी जरूरत एक साथ है  ताकि कोई चपेट में आए तो मेडिसिन कोर्स शुरू करने में देर न हो। मैंने अपने परिवार में किसी बीमारी के प्रारम्भ से लेकर अब तक हमेशा होम्योपैथिक दवाएं ही खिलाई हैं, जिसके कारण कभी कोई दिक्कत नहीं आई । अंग्रेजी दवा की टैबलेट या कैप्सूल ज़रूरत पड़ने पर ही कोई शायद  निगलता हो , दादा दादी को तो  हमें उसे तोड़-पीस कर शहद के साथ देनी पड़ती है। ये सही है कि एक नकारात्मक माहौल है, जिसमें हर कोई एक-दूसरे को विरोधी के रूप में ही देखता और तौलता है, मसलन कोई मोदी समर्थक या मोदी विरोधी ही हो सकता है, ऐसा तो कोई हो ही नहीं सकता जो इन दोनों से हटकर सोचने-समझने का बुद्धिविवेक रखता हो। सोचने वाली बात ये है कि ये कतई ज़रूरी नहीं कि हर चीज में विरोधाभास ही देखा जाए, अगर दिमाग का इस्तेमाल किया जाए तो सबकुछ साथ-साथ भी चल सकता है। पहले भी चलता ही रहा है, ये सारी चिकित्सा पद्धतियां अभी पैदा नहीं हुई हैं, पहले से ही हैं और सबका सह अस्तित्व रहा है। मैं अंग्रेजी चिकित्सा पद्धति, आयुर्वेदिक, होमियोपैथिक सबको समान रूप से सम्मानजनक और ज़रूरी मानता हूं और मेरी ये सीधी सलाह है कि जब मरीज को जिस पद्धति की ज़रूरत हो, उसी का सहारा लेना चाहिए। इन बयानवीरों के चक्कर में फंसेंगे तो जान से जाएंगे। सिर्फ हमारी मातृभूमि बिहार के सौ से ज्यादा और कर्मभूमि दिल्ली के सौ से ज्यादा डॉक्टरों के साथ देश भर के चार सौ से ज्यादा डॉक्टर्स कोरोना मरीजों की जान बचाने में अपनी जान गंवा चुके हैं। इस वक्त किसी और चिकित्सा पद्धति के पास कोई सटीक इलाज नहीं था, अगर वैकल्पिक पद्धतियों के विशेषज्ञ, चिकित्सक चाहते तो हज़ारों ऐसे मरीज थे, जिन्हें अस्पताल नहीं मिल पा रहे थे, उनकी सेवा कर सकते थे, उनकी जान बचा सकते थे, लेकिन वो भी सरकार और सिस्टम की तरह लापतागंज में आराम फरमा रहे थे। तब जान बचाने के लिए क्वारंटीन थे, अब केस घटने के बाद ज्ञानबघारी कर रहे हैं। मान लिया कि ज्ञानियों का हमारा देश है, जहां बकथोथी में ही सरकार, सिस्टम और जनता सबको हर समस्या का समाधान दिखता है, लेकिन समाधान की बजाय समस्या खड़ी करने का काम नहीं होना चाहिए। इस वक्त भी एलोपैथी के चिकित्सक बोल दें कि आयुर्वेदिक से काम चला लें तो पता चल जाएगा कि आंकड़े कहां पहुंच सकते हैं।
                      बाबा रामदेव का बयान राजनीति में गलत वक्त पर गलत विवाद खड़ा करना नहीं था इसके पीछे मंशा सिर्फ अपनों की मौत से दुखी लोगों के साथ खड़ा होना  है, ये बात हर कोई समझ रहा है। कहीं कोई विरोध किसी भी चिकित्सा पद्धति का एक-दूसरे से नहीं है, जिस पर जिसका भरोसा है वो उसे अपनाता रहा है और अपनाता रहेगा, जैसे कि मैंने खुद अपने परिवार का बताया, सब साथ-साथ चलता है। खुद को ग्लूकोज़ चढ़वाना हो, अपने डिप्टी को आईसीयू में भर्ती कराना हो तो एलोपैथी और वहां से ठीक होकर निकल जाने के बाद एलोपैथी का विरोध, ये मानसिकता सही नहीं है। दूसरी ओर एलोपैथिक वालों को भी ये समझने की ज़रूरत है कि बाकी चिकित्सा पद्धतियां उनसे भी पहले की हैं, आयुर्वेदाचार्य चरक एक सर्जन भी थे, तो विशेषज्ञता किसी की पेटेंट नहीं है। इसीलिए विवाद का विषय ना बना कर एलोपैथ वाले इस बात को बिल्कुल मान ले कि आयुर्वेद भी चिकित्सा के क्षेत्र में एक अहम पड़ाव है जिसके बिना एलोपैथ कुछ नहीं ।
                  

 --- पंकज कुमार मिश्रा एडिटोरियल कॉलमिस्ट शिक्षक एवं पत्रकार, केराकत जौनपुर 


Comentarios

No Comment Available Here !

Leave a Reply

अपना कमेंट लिखें। कॉमेंट में किसी भी तरह की अभद्र भाषा का प्रयोग न करें। *

भारतवर्ष

अगर आपके पास कोई समाचार हो तो आप हमे jaibharatvarsh4@gmail.com पर भेज सकते हैं। >>

Copyright 2020. All right reserved