नेताजी सुभाष चन्द्र बोस की जयंती पर ख़ास
22-01-2021 08:13:23 PM

नेताजी सुभाष चंद्र बोस, जो कि आजाद हिंद फौज के संस्थापक होने के साथ ही भारत की स्वतंत्रता में अहम भूमिका निभाने वाले लोगों में से एक थे। केंद्र सरकार ने नेता जी की 125वीं जयंती यानी 23 जनवरी 2021 को पराक्रम दिवस के रूप में मनाने का फैसला किया है। सुभाष चंद्र ने अपनी आजाद हिंद फौज तैयार करके अंग्रेजों के खिलाफ बिगुल फूंक दिया था। इस फै
दरअसल, सुभाष चंद्र बोस एक क्रांतिकारी नेता थे और वो किसी भी कीमत पर अंग्रेजों से किसी भी तरह का कोई समझौता नहीं करना चाहते थे। उनका एक मात्र लक्ष्य था कि भारत को आजाद कराया जाए। शुरुआत में नेताजी महात्मा गांधी के साथ देश को आजाद कराने की मुहिम से जुड़े रहे, लेकिन बाद मे उन्होंने अलग होकर साल 1939 में फॉरवर्ड ब्लॉक की स्थापना की। सुभाष चंद्र बोस ने भारत को द्वितीय विश्व युद्ध में शामिल किए जाने का विरोध किया, तो अंग्रेजों ने उन्हें जेल में डलवा दिया। जहां नेताजी भूख हड़ताल पर बैठ गए। ऐसे में अंग्रेंजों ने उन्हें जेल से रिहा तो कर दिया, लेकिन उनके ही घर में उन्हें नजरबंद कर दिया गया।
इसी दौरान सुभाष चंद्र बोस जर्मनी भाग गए और वहां जाकर युद्ध मोर्चा देखा और साथ ही युद्ध लड़ने की ट्रेनिंग भी ली। यहीं नेताजी ने सेना का गठन भी किया। जब वो जापान में थे, तो आजाद हिंद फौज के संस्थापक रासबिहारी बोस ने उन्हें आमंत्रित किया। डॉक्टर राजेंद्र पटोरिया अपनी किताब 'नेताजी सुभाष' में लिखते हैं कि, "4 जुलाई 1943 को सिंगापुर के कैथे भवन में एक समारोह में रासबिहारी बोस ने आज़ाद हिंद फौज की कमान सुभाष चंद्र बोस के हाथों में सौंप दी।" इसके बाद नेताजी ने इस फौज के सर्वोच्च सेनापति की हैसियत से स्वतंत्र भारत की अस्थायी सरकार बनाई, जिसे कोरिया, चीन, जर्मनी, जापान, इटनी और आयरलैंड समेत नौ देशों ने मान्यता भी दी
सुभाष चंद्र बोस ने आजाद हिंद फौज को काफी शक्तिशाली बनाया और आधुनिक रूप से फौज को तैयार करने के लिए जन, धन और उपकरण जुटाए। यहां तक कि नेताजी ने राष्ट्रीय आजाद बैंक और स्वाधीन भारत के लिए अपनी मुद्रा के निर्माण के आदेश दिए। महिलाओं के बारे में अच्छी सोच रखते हुए सुभाष चंद्र बोस ने अपनी फौज में महिला रेजिमेंट का गठन किया था, जिसे रानी झांसी रेजिमेंट भी कहा जाता था। इसकी कमान कैप्टन लक्ष्मी स्वामीनाथन को सौंपी गई थी।
सुभाष चंद्र बोस ने 'फॉरवर्ड' नाम से पत्रिका के साथ ही आजाद हिंद रेडियो की भी स्थापना की और जनमत बनया। इसके माध्यम से वो लोगों को आजाद होने के प्रति जागरूक करते थे। वैसे तो कोहिमा और इंफाल के मोर्चे पर कई बार इस भारतीय ब्रिटेश सेना को आजाद हिंद फौज ने युद्ध में हराया। लेकिन जब द्वितीय विश्व युद्ध समाप्त होने के बेहद करीब था, तभी 6 और 9 अगस्त 1945 को अमेरिका ने जापान के दो शहर हिरोशिमा और नागासाकी पर एटम बम गिरा दिये। इसमें दो लाख से भी ज्यादा लोग मरे थे। 'जापान की हार के साथ बेहद कठिन परिस्थितियों में आजाद हिंद फौज ने आत्मसमर्पण कर दिया और फिर इन सैनिकों पर लाल किले में मुकदमा भी चलाया गया।' मुकदमा चलने की वजह से लोग अंग्रेजों पर भड़क उठे और जिस भारतीय सेना के दम पर अंग्रेज हमारी मातृभूमि पर राज कर रहे थे, वो ही सेना विद्रोह पर उतर आई। इन सौनिकों के विद्रोह ने अंग्रेजों को इस देश से जाने को लेकर आखिरी मजबूत काम किया। इसके बाद अंग्रेज समझ गए कि अब उन्हें भारत छोड़कर जाना ही पड़ेगा, और फिर उन्होंने भारत छोड़ने की घोषणा कर दी।
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