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DEORIA NEWS तहसील बार एसोसिएशन देवरियाः जताया अधिवक्ता संशोधन बिल 2025 पर विरोध

25-02-2025 10:31:50 PM

 

AJAY KUMAR PANDEY

देवरिया । तहसील बार एसोसिएशन देवरिया के डॉक्टर राजेंद्र प्रसाद भवन में अध्यक्ष सामंत कुमार मिश्र की अध्यक्षता में अधिवक्ता संशोधन बिल 2025 पर बैठक संपन्न हुई ।

इसमें संघ के सभी सदस्यों के तरफ से यह तय किया गया कि केंद्र सरकार, नई दिल्ली द्वारा लाया गए अधिवक्ता संशोधन बिल 2025 का तहसील बार एसोसिएशन देवरिया विरोध करता है।

जो मसौदा बिल पास करने व कानून बनाने ही तैयार हो चुका है उसे तत्काल प्रभाव से वापस किए जाने की मांग केंद्र से करता है।

गूगल करिय https://fb.watch/xZIaRmBYhL/ वीडियो

अधिवक्ता संशोधन बिल 2025 संशोधन के माध्यम से अधिवक्ताओं के हड़ताल व बहिष्कार पर रोक लगाना चाहती है ।

इस माध्यम स सरकार अधिवक्ताओं के संवैधानिक अधिकारों और स्वतंत्रता पर रोक लगाना चाहती है।

https://fb.watch/xZIdXOiLD7/   अधिवक्ता क्या बोले, गूगल कर

इस बिल के जरिए सरकार अधिवक्ताओं को कमजोर करने का दूषित प्रयास कर रही है।

भारत सरकार का प्रस्तावित अधिवक्ता संशोधन विधेयक 2025 देश के लोकतांत्रिक व्यवस्था पर सीधा प्रहार है ।

इस विधेयक के माध्यम से कार्यपालिका, न्यायपालिका की स्वतंत्रता को कमजोर करने का साजिश कर रही है।

अधिवक्ताओं के अधिकार और स्वतंत्रता को कुचलकर सरकार निरंकुश होना चाहती है।

इस बिल में केंद्र सरकार बार काउंसिल आफ इंडिया (बीसीआई) में तीन सदस्य नामांकित करने का अधिकार दिया गया है, जिससे यह संस्थान स्वतंत्र न रहकर सरकारी नियंत्रण में चला जाएगा ।

साथ ही साथ राज्य बार काउंसिल की चुनाव प्रक्रिया में बदलाव और सत्यापन प्रमाण पत्र की अनिवार्यता अधिवक्ताओं पर जबरन सरकारी नियंत्रण ठोकने जैसा है ।

इस विधेयक के तहत अधिवक्ताओं द्वारा हड़ताल और न्यायालय बहिष्कार पर पूर्ण प्रतिबंध लगाया गया है ।

यह सरकार की तानाशाही मानसिकता को दर्शाता है क्योंकि जब अधिवक्ता सरकारी हस्तक्षेप के खिलाफ आवाज उठाएंगे ही नहीं तो न्यायपालिका में निष्पक्षता और पारदर्शिता कैसे बनी रहेगी ।

हड़ताल व बहिष्कार अधिवक्ताओं का लोकतांत्रिक अधिकार है।

इसको छीनन का कोई औचित्य नहीं है।

सरकार अधिवक्ताओं पर पेशेवर विकास शुल्क ( प्रोफेशनल डेवलपमेंट फीस) और अनिवार्य पंजीकरण लागू करके इन्हें आर्थिक रूप से कमजोर करने की साजिश कर रही है।

इस प्रकार का टैक्स अधिवक्ताओं को सरकार के सामने झुकने को मजबूर करेगा।

इस विधेयक में केंद्र सरकार को विदेशी फर्म क लिए नियम बनाने का अधिकार दिया गया है जिससे विदेशी ला फर्म भारतीय न्याय प्रणाली में प्रवेश कर स्थानीय अधिवक्ताओं को हासिया पर धकेलना का खतरा बढ़ जाएगा ।

यह भारतीय वकीलों क अस्तित्व के लिए बड़ा खतरा है।

बिल मं दो वर्षों के भीतर अनुशासनात्मक कार्रवाई की शिकायतों की जांच के लिए विशेष समिति बनाने का प्रावधान है ।

असल में यह एक सरकारी हथियार है जिसके जरिए किसी भी समय अधिवक्ता को परेशान किया जा सकता है ।

अगर किसी अधिवक्ता पर गंभीर कदाचार का आरोप सिद्ध होता है तो उसका नाम अधिवक्ता सूची (स्टेट रोल) से हटाया जा सकता है।

यहां तक की कोई वकील सरकार की आलोचना करता है तो भी उसे पर कदाचार का आरोप लगाकर उसको स्टट सूची स बाहर किया जा सकता है ।

विधेयक में केंद्र सरकार को बार काउंसिल आफ इंडिया को निर्देश देने का अधिकार दिया गया है जो न्यायपालिका की स्वतंत्रता को पूरी तरह सरकार के अधीन कर देगा।

अगर निगरानी सरकार करेगी तो न्यायपालिका स्वतंत्र कैसे रहेगी वही इस विधेयक को लेकर या भी सवाल है कि बिल स्पष्ट रूप से न्यायपालिका पर सरकार के हस्तक्षेप को मजबूत करने और अधिवक्ताओं को सरकार के अधीन करने का षड्यंत्र है ।

यह न केवल संविधान की मूल ढांचे के खिलाफ है बल्कि लोकतंत्र को कुचलना का एक साजिश भी है।

इस मसौदा बिल के जरिया अधिवक्ताओं को उनका संवैधानिक अधिकारों से वंचित करने और न्यायपालिका पर सरकारी नियंत्रण स्थापित करने की बड़ी साजिश है।

इसलिए सभी नागरिकों और अधिवक्ताओं को एकजुट होकर इस का पुरजोर विरोध करना चाहिए ।

हमें यह सुरक्षित करना होगा, हमें सुनिश्चित करना होगा कि न्यायपालिका स्वतंत्र और निष्पक्ष बनी रह।

संविधान की आत्मा सुरक्षित रह सके ।


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