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रंगो के त्योहार से पूर्व का लग्न ! ________

22-03-2021 07:54:52 AM


भारतीय संस्कृति के विभिन्न रंगों को दर्शाने वाली , सर्वधर्म समभाव सभ्यता वाले देश में एक दूसरे को प्यार से रंगने का त्योहार होली बस आने वाली है जिसके लिए देश का मौसम अनुकूल हो रहा । वर्तमान समय में पिछले वर्ष की ही भातिं करोना नामक महामारी का प्रकोप बढ़ रहा ,ऐसे में जरूरत है हम लगातार पूर्व में निर्गत नियमों और सावधानियों का अनुपालन सुनिश्चित  कर लें । होली का पर्व बहुत ही खास पर्व माना जाता रहा है क्युकी इसके बाद से लग्न विवाह इत्यादि शुभकारी कार्य प्रारम्भ हो जाते है किन्तु क्या आपको पता है कि होली से आठ दिन पहले कोई भी शुभ कार्य पूर्ण वर्जित है । आइए आज धर्म विश्लेषण कॉलम में  इसी मुद्दे का चर्चा आपके समक्ष रख रहा । होलाष्टक 21- 22 मार्च को लगेगा और यह 28 मार्च तक रहेगा। होलाष्टक के दौरान किसी भी तरह के शुभ और मांगलिक कार्य वर्जित होते हैं। होली आने की पूर्व सूचना होलाष्टक से प्राप्त होती है। इसी दिन से होली उत्सव के साथ-साथ होलिका दहन की तैयारियां भी शुरू हो जाती है। होलाष्टक के दौरान सभी ग्रह उग्र स्वभाव में रहते हैं जिसके कारण शुभ कार्यों का अच्छा फल नहीं मिल पाता है। होलाष्टक प्रारंभ होते ही प्राचीन काल में होलिका दहन वाले स्थान की गोबर, गंगाजल आदि से लिपाई की जाती थी। साथ ही वहां पर होलिका का डंडा लगा दिया जाता था जिनमें एक को होलिका और दूसरे को प्रह्लाद माना जाता है।
               होलाष्टक के दौरान अष्टमी को चंद्रमा, नवमी को सूर्य, दशमी को शनि, एकादशी को शुक्र, द्वादशी को गुरु, त्रयोदशी को बुध, चतुर्दशी को मंगल और पूर्णिमा को राहू उग्र स्वभाव में रहते हैं। इन ग्रहों के उग्र होने के कारण मनुष्य के निर्णय लेने की क्षमता कमजोर हो जाती है जिसके कारण कई बार उससे गलत निर्णय भी हो जाते हैं जिसके कारण हानि की आशंका बढ़ जाती है। जिनकी कुंडली में नीच राशि के चंद्रमा और वृश्चिक राशि के जातक या चंद्र छठे या आठवें भाव में हैं उन्हें इन दिनों अधिक सतर्क रहना चाहिए। फाल्गुन मास के शुक्ल पक्ष की अष्टमी से लेकर पूर्णिमा ​तिथि तक होलाष्टक माना जाता है। होलाष्टक होली दहन से पहले के 8 दिनों को कहा जाता है। इस बार 22 मार्च 2021 से 28 मार्च 2021 तक होलाष्टक रहेगा। इस वर्ष होलिका दहन 28 मार्च को किया जाएगा और इसके बाद अगले दिन रंगों वाली होली खेली जाएगी। होलाष्टक में विवाह करना, वाहन खरीदना, घर खरीदना, भूमि पूजन, गृह प्रवेश, कोई नया कार्य प्रारंभ करना एवं अन्य प्रकार के मांगलिक कार्य नहीं किए जाते हैं।  होलाष्टक में पूजा-पाठ करने और भगवान का स्मरण भजन करने से शुभ फल की प्राप्ति होती है। मान्यता है कि होलाष्टक में कुछ विशेष उपाय करने से कई प्रकार के लाभ प्राप्त किए जा सकते हैं। होलाष्टक के दौरान श्रीसूक्त व मंगल ऋण मोचन स्त्रोत का पाठ करना चाहिए जिससे आर्थिक संकट समाप्त होकर कर्ज मुक्ति मिलती है। इस दौरान भगवान नृसिंह और हनुमानजी की पूजा का भी महत्व है। होलाष्टक के प्रारंभ होने वाले दिन एक स्थान पर दो डंडे स्थापित किए जाते हैं। जिनमें से एक डंडा होलिका का प्रतीक तो दूसरा डंडा प्रहलाद का प्रतीक माना जाता है। इसके बाद इन डंडों को गंगाजल से शुद्ध करके के बाद इन डंडों के इर्द-गिर्द गोबर के उपले, लकड़ियां, घास और जलाने वाली अन्य चीजें इकट्ठा की जाती है और इन्हें धीरे-धीरे बड़ा किया जाता है और अंत में होलिका दहन वाले दिन इसे जला दिया जाता है।
                    होलाष्टक के संबंध में 2 कथाएं प्रचलित है। पहली कथा भक्त प्रहलाद से जुड़ी है और दूसरी कथा कामदेव से। पहली कथा के अनुसार भक्त प्रहलाद को उसके पिता ने हिरण्यकश्यप ने अपने पुत्र की भक्ति को भंग करने और उनका ध्यान अपनी और करने के लिए लगातार 8 दिनों तक उन्हें तमाम तरह की यातनाएं और कष्ट दिए थे। इसलिए कहा जाता है कि, होलाष्टक के इन 8 दिनों में किसी भी तरह का कोई शुभ कार्य नहीं करना चाहिए। यह 8 दिन वहीं होलाष्टक के दिन है। होलिका दहन के बाद ही जब प्रहलाद जीवित बच जाता है तो उसकी जान बच जाने की खुशी में ही दूसरे दिन रंगों की होली मनाई जाती है। दूसरी कथा के अनुसार देवताओं के कहने पर शिवजी की तपस्या भंग करने के कारण जब कामदेव को शिवजी अपने तीसरे नेत्र से भस्म कर देते हैं तब कामदेव की पत्नि शिवजी से उन्हें पुनर्जीवित करने की प्रार्थना करती है। रति की भक्ति को देखकर शिवजी इस दिन कामदेव को दूसरा जन्म में उन्हें फिर से रति मिलन का वचन दे देते हैं। कामदेव बाद में श्रीकृष्ण के यहां प्रद्युम्न रूप में जन्म लेते हैं।

 


        --- पंकज कुमार मिश्रा 
  एडिटोरियल कॉलमिस्ट 
शिक्षक एवं पत्रकार, 
केराकत जौनपुर ।


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