स्त्री विमर्श की बाते केवल कागजों तक ! ______
11-07-2021 10:02:09 PM
समाज में स्त्रियों को जो स्थान मिलना चाहिए वो अब तक उन्हे नहीं मिला है । उन्हे अभिव्यक्ति की आजादी तो मिली किन्तु खुद को अभिव्यक्त करने की स्वतंत्रता नहीं मिली । उन्हे जीवन जीने के लिए मंच दिया गया किन्तु उस मंच पर खुल के जीने का अधिकार नहीं दिया गया । स्त्रियों को नौकरियों में आरक्षण तो दिया गया किन्तु उन्हें जीवन में आनंद के लिए आरक्षण नहीं मिला । एक पुरुष समाज में स्त्री का शोषण कर के शान से समाज में घुल मिल जाता है पर एक स्त्री जो भले शोषित ही हुईं हो पर वह समाज से काट कर अलग थलग कर दी जाती है । पुरुष कूकृत्य करे तो ये उसके वंशगत सोच और चरित्र की वीरता पर यदि महिलाएं कृत्य करे तो ये उनकी मजबूरी ! ऐसा क्यों ? आइए इसे एक उदाहरण से समझते है । एक दिन गांव में महिला दिवस पर महिला सभा का आयोजन किया गया, सभा स्थल पर महिलाओं की संख्या अधिक और पुरुषों की कम थी ! मंच पर तकरीबन पच्चीस वर्षीय खुबसूरत युवती, आधुनिक वस्त्रों से सुसज्जित, माइक थामें कोस रही थी पुरुष समाज को ! महिला शसक्तीकरण की बड़ी बड़ी बाते उछाली जा रही थी । ऐसे लेक्चर और संबोधन जो केवल सुनने में अच्छे लगते है पर उनका वास्तविक धरातल से कोई संबंध नहीं ।
वही पुराना आलाप.... कम और छोटे कपड़ों को जायज, पुरुष अपनी सोच बदले ये वो और कुछ भी पहनने की स्वतंत्रता का बचाव करते हुए महिला समस्त समाज को ललकार रही थी, पुरुषों की गन्दी सोच और खोटी नीयत का दोष बतला रही थी । तभी अचानक सभा स्थल से तीस बत्तीस वर्षीय सभ्य, शालीन और आकर्षक से दिखते नवयुवक ने खड़े होकर अपने विचार व्यक्त करने की अनुमति मांगी ! अनुमति स्वीकार कर माइक उसके हाथों मे सौप दिया गया हाथों में माइक आते ही उसने बोलना शुरु किया ! "माताओं, बहनों और भाइयों, मैं आप सबको नही जानता और आप सभी मुझे नहीं जानते कि, आखिर मैं कैसा इंसान हूं ? लेकिन पहनावे और शक्ल सूरत से मैं आपको कैसा लगता हूँ बदमाश या शरीफ ?
सभास्थल से कई आवाजें गूंज उठीं कि पहनावे और बातचीत से तो आप शरीफ लग रहे हो । शरीफ हो, शरीफ हो । बस यही सुनकर, अचानक ही उसने अजीबोगरीब हरकत कर डाली ,सिर्फ फ्रेंच टाइप की अपनी अंडरवियर छोड़ कर के बाक़ी सारे कपड़े मंच पर ही उतार दिये ! ये देख कर पूरा सभा स्थल आक्रोश से गूंज उठा, मारो-मारो गुंडा है, बदमाश है, बेशर्म है, शर्म नाम की चीज नहीं है इसमें मां बहन का लिहाज नहीं है इसको, नीच इंसान है, ये छोड़ना मत इसको ,उतरों मंच से । ये आक्रोशित शोर सुनकर ,अचानक वो माइक पर गरज उठा । "रुको ! पहले मेरी बात सुन लो, फिर मार भी लेना , चाहे तो जिंदा जला भी देना मुझको ।अभी अभी तो....ये बहन जी कम कपड़े , तंग और बदन नुमाया छोटे-छोटे कपड़ों की पक्ष के साथ साथ स्वतंत्रता की दुहाई देकर गुहार लगाकर "नीयत और सोच में खोट" बतला रही थी ! तब तो आप सभी तालियां बजा-बजाकर सहमति जतला रहे थे फिर मैंने क्या किया है ? सिर्फ कपड़ों की स्वतंत्रता ही तो दिखलायी है ! मेरी "नीयत और सोच" में खोट तो नहीं ना और आप लोगों को , मैंने मां बहन और भाई भी कहकर ही संबोधित किया था ,फिर मेरे अर्द्ध नग्न होते ही आप में से किसी को भी मुझमें "भाई और बेटा" क्यों नहीं नजर आया ?
मेरी नीयत में आप लोगों को खोट कैसे नजर आ गया ? मुझमें आपको सिर्फ "मर्द" ही क्यों नजर आया? भाई, बेटा, दोस्त क्यों नहीं नजर आया? आप में से तो किसी की "सोच और नीयत" भी खोटी नहीं थी फिर ऐसा क्यों? "सच तो यही है कि झूठ बोलते हैं लोग कि "वेशभूषा" और "पहनावे" से कोई फर्क नहीं पड़ता ।हकीकत तो यही है कि मानवीय स्वभाव है कि किसी को सरेआम बिना "आवरण" के देख लें तो कामुकता जागती है मन में, रूप, रस, शब्द, गन्ध, स्पर्श ये बहुत प्रभावशाली कारक हैं इनके प्रभाव से “विस्वामित्र” जैसे मुनि के मस्तिष्क में विकार पैदा हो गया था,जबकि उन्होंने सिर्फ रूप कारक के दर्शन किये ,आम मनुष्यों की विसात कहाँ ? दुर्गा शप्तशती के देव्या कवच में श्लोक 38 में भगवती से इन्हीं कारकों से रक्षा करने की प्रार्थना की गई है ।
“रसे_रुपे_च_गन्धे_च_शब्दे_स्पर्शे_च_योगिनी।
सत्त्वं_रजस्तमश्चैव_रक्षेन्नारायणी_सदा।।” रस रूप गंध शब्द स्पर्श इन विषयों का अनुभव करते समय योगिनी देवी रक्षा करें तथा सत्वगुण, रजोगुण, तमोगुण की रक्षा नारायणी देवी करें ।अब बताइए, हम भारतीय हिन्दु महिलाओं को "हिन्दु संस्कार" में रहने को समझाएं तो स्त्रियों की कौन-सी "स्वतंत्रता" छीन रहे हैं ?सोशल मीडिया पर अर्ध-नग्न होकर नाचती 90% लड़कियां -महिलाएँ,हिंदू हैं और मज़े लेने वाले 90% इस्लामिक मनोभाव वाले व्यक्ति है । ये बताने की भी ज़रूरत है क्या ,आँखे खोलिए …संभालिए अपने आप को और अपने समाज को, क्योंकि भारतीय समाज और संस्कृति का आधार नारीशक्ति है ।
__ पंकज कुमार मिश्रा एडिटोरियल कॉलमिस्ट शिक्षक एवं पत्रकार
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