तिरुपति के लड्डू।
21-09-2024 02:38:14 PM
तिरुपति के लड्डू।
हिंदुओं के आस्था के केंद्र तथा देश में सबसे धनी मंदिर तिरुपति बालाजी मंदिर के लड्डू प्रसादम की गुणवत्ता को लेकर आंध्र के मा. मुख्यमंत्री चंद्रबाबू नायडू जी के बयान ने तहलका मचा दिया है। उन्होंने खुलासा किया है कि पूर्व मुख्यमंत्री वाई यस जगन मोहन रेड्डी के काल में इन लड्डुओं के बनाने में जिस देशी घी का प्रयोग होता था, उसमें परीक्षण से जानवरों की चर्बी पायी गई है।यह परीक्षण गुजरात के आणंद स्थित राष्ट्रीय डेरी विकास बोर्ड (NDDB) के पशुओं के भोजन के विश्लेषण तथा सीखने के केंद्र (Center for analysis and learning in livestock and food) (CALF) में किया गया था।
तिरुपति बालाजी में भक्तों को प्रसाद के रूप में बड़ा लड्डू भुगतान पर मिलता है जो खाने में स्वादिष्ट भी होता है।इस लड्डू की वर्ष भर की बिक्री से मंदिर के ट्रस्ट को ५०० करोड़ रुपए का लाभ होता है।इस लड्डू के बनाने के लिए घी डिंडीगुल की ए.आर.डेयरी से आता है जो अन्य कई फर्मों को भी घी बेचती है। डेयरी ने अपने घी को शुद्ध बताते हुए मिलावट से इंकार किया है।तिरुपति ट्रस्ट के पास घी की शुद्धता परीक्षण की कोई प्रयोगशाला नहीं है।
CALF ने लड्डू में प्रयुक्त घी में मछली का तेल,गोवंश की चर्बी,(beef tallow),सुअर के पेट की चर्बी Lard (fat drawn from abdomens of pigs)पाई ।इन सबको मिलाकर विदेशी चर्बी (foreign fat) कहा गया है।इसके अतिरिक्त घी में सोयाबीन, जैतून, सूरजमुखी,रेपसीड,लिनसीड, गेहूं, मक्का,कपास के बीज, नारियल और ताड़ की गिरी (palm kernel)भी पाई गई है।इसके साथ ही रिपोर्ट में कहा गया है कि यह रिपोर्ट अन्य आठ कारणों से गलत भी हो सकती है जिसमें गाय को कम खिलाना,गाय को अधिक वनस्पति घी खिलाना भी सम्मिलित है।
तिरुपति मंदिर एक स्वायत्तशासी तिरुमला तिरुपति देवस्थानम ट्रस्ट द्वारा संचालित होता है,इस पर राज्य या केंद्रीय सरकार का सीधा नियंत्रण नहीं है, फिर इस लड्डू की गुणवत्ता के लिए पूर्व मुख्यमंत्री कैसे उत्तरदाई हुए,इस पर नायडू जी मौन है।
तिरुपति के लड्डू ही क्यों, देश के बहुत से मंदिरों में प्रसाद की बिक्री हो रही है,उनकी शुद्धता की की कोई गारंटी नहीं है। बाबा रामदेव के शुद्ध गाय घी व शुद्ध शहद का हाल सब जानते ही हैं।किसी भी क्षेत्र में जितना दूध नही होता,उससे अधिक का खोया और पनीर बाजार में बिक रहे हैं।
नायडू के उक्त रहस्योद्घाटन से धार्मिक एवं राजनीतिक क्षेत्र में बवंडर उठ खड़ा हुआ है। केंद्र सरकार के दो वरिष्ठ मंत्री आंध्र सरकार से विस्तृत आख्या मांग रहे हैं व घी का अन्य प्रयोगशाला से परीक्षण कराकर दोषियों के विरुद्ध कठोर कार्रवाई कराएंगे। पुनः परीक्षण में क्या आता है,क्या कार्रवाई होगी,यह भविष्य की बात है।
वर्ष २००९ में मैं यसयसपी आगरा नियुक्त हुआ।उसी समय जमुना नदी के किनारे की झाड़ियों के पास जानवरों की चर्बी एकत्र कर बड़े कड़ाहों में पिघला कर कुछ अन्य सामग्री डालकर घी बनाने की घटना का भंडाफोड़ हुआ।इस घी को साबुन उद्योग में तथा कुछ घी बनाने वाली फैक्ट्रियों में आपूर्ति की जाती थी।इस कार्य में लिप्त कुछ गिरफ्तार हुए , मुख्य अभियुक्त स्थानीय बसपा विधायक की शरण में चले गए,जो जूता निर्यातक भी थे।उस समय बसपा की सरकार थी। विधायक जी ने मुझसे फोन पर उसकी शिफारिश की, फिर हमारे घर आकर की।अनुकूल उत्तर न पाकर मा. मुख्यमंत्री जी से मेरी शिकायत लखनऊ जाकर की।तीसरे दिन मैं व जिलाधिकारी कैबिनेट सचिव के दरबार में तलब हुए। वहां कैबिनेट सचिव व डीजीपी के समक्ष विधायक जी ने मेरे ऊपर उनसे अशिष्ट व्यवहार की शिकायत की। प्रतिउत्तर में मैने उनके मुख्य अभियुक्त की शिफारिश का उल्लेख कर इस कांड में उन्हें भी शरणदाता बता कर उनके विरुद्ध भी कार्यवाही करने की बात की। डीजीपी विक्रम सिंह जी ने दबंगई से कहा कि जो भी इस कांड में मुल्जिम हो,जनता के सामने जूता मार कर मैं बंद कर दूं।इतना सुनते ही माननीय विधायक भोंकार छोड़कर (जोर-जोर से) रोने लगे।हम सभी स्तब्ध रह गए। विधायक को सबके सामने ऐसे रोता मैने पहली बार देखा। फिर डीजीपी व कैबिनेट सचिव ने उन्हें समझाया कि उनके खिलाफ कार्रवाई नहीं होगी,वह शीघ्र मुख्य अभियुक्त को पुलिस को दे दें,तब वह रोना बंद किए और अगले दिन ही अभियुक्त को थाने भेज दिए।
बात लड्डू की पवित्रता की ही नहीं है,देश के सभी खाद्य पदार्थों,दूध,मसालों, सब्जियों, फलों, दवाइयों की शुद्धता का है जिसका सेवन हम सभी कर रहे हैं ।
हमारी सोच ऐसी हो गई है कि हम अपने फायदे के लिए किसी भी पदार्थ में कुछ भी मिला सकते हैं,उससे उपभोक्ता मरे या बीमार हो,इसकी चिंता हम नहीं करते।शहर या देहात में यदि हमें किसी कीमत पर शुद्ध दूध,घी मिल जाए तो हमारा सौभाग्य। सब्जियों पर इतना कीटनाशक का छिड़काव हो रहा है कि वह खाने योग्य नहीं रह गई। गेहूं, चावल की फसलों में रासायनिक खादों तथा कीटनाशकों का उपयोग बढ़ता जा रहा है।यही हाल दवाओं की गुणवत्ता का भी है।नयी नयी दवाइयों में कौन सा साल्ट नुकसान दायक है,पता ही नहीं रहता। विदेशों में कितनी प्रतिबंधित दवाएं हमारे यहां रोगियों को खिलाई जा रही हैं।इन सब का प्रभाव स्पष्ट है, डायबिटीज और कैंसर व अन्य रोगियों की संख्या में अप्रत्याशित वृद्धि हो रही है।
केंद्रीय व सभी प्रदेशीय सरकारों से विनम्र अनुरोध है कि इस समस्या पर गंभीरता से विचार कर इसका स्थाई समाधान करें। -
साभार -
बद्री प्रसाद की वाल से
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